Friday, January 2, 2015

किसान की रजामंदी के बिना होगा भूमि अधिग्रहण....!!क्या चाहते हैं नरेंद्र मोदी जी ऐसा कानून बनबाकर ??आदिवासियों को भूमि हड़पने और अपने ही घर से बेदखल होने का और डर सताए , पूरा आदिवासी समाज या खेती पर निर्भर रहने वाले परिवार,बेचारे सिसकें, रोएँ और कहें की इससे अच्छा तो हम गुलाम ही सही थे..!! नक्सलाइट को और बढ़ावा मिले??साहब !!उन ग्रामों को जिन्हे आप विकास के नाम पर आधुनिक बनाना चाहते हैं,क्या उसके निवासियों को आप इतना भी हक़ नहीं देना चाहते ?? की जब विकास की बात आये और उनके खेत सरकार द्वारा कब्जाए जाएँ तो ग्रामों के हलधर अपनी बात भी कह सकें,थोड़ा मनमाफिक मुआवजा भी मांग सकें..!!
 कभी चाय की दुकान पर काम करने वाले भारत के प्रधानमंत्री जी, क्या आपको यह अनुभव नहीं प्राप्त है?? की टूटे छप्पर और फूटे बर्तन के घर का मालिक जब अपने मासूमो की भूख शांत करने के लिए सड़क पर चाय की गुमटी लगाता है,और एकदिन एकाएक बिना कोई वैकल्पिक व्यवसाय दिए, विकास के नाम पर शहर की मोटरें लाठी सहित आतीं है,गुमटी तोड़ती हैं तो उस मासूम पिता पर क्या बीतती है??.शायद आपको अनुभव नहीं मिल पाया हो आप स्टेशन पर जो काम करते रहें हैं..पर सबने देखा है उस टूटे छप्पर के घर में झांक कर की उस दिन घर में छोटे बच्चे सिर्फ तड़पते हैं भूख से, घर में चूल्हा नहीं जलता है बहुत दिनों तक.....!!
तो फिर उस पर क्या बीतेगी जो अपनी एकमात्र संपत्ति को सरकार के हाथों लूटते देखेगा क्या आपका नियम लोकतंत्र की हत्या नहीं करेगा... अरे,,कुछ अधिकार गरीबों के पास भी रहने दो, सरकार कभी तो उनके दरवाजे तक कुछ आदेश लेने जाये..!! राष्ट्रवाद के साथ मानवीय संवेदनाओ का जिन्दा रहना भी जरुरी है वर्ना विकास की जगह अन्याय होने लगता है पिछड़ी आबादी के साथ...!!

Monday, December 29, 2014

अब चूंकि इस परंपरा का जोर है कि सत्ता का सुख आपकी गुणवत्ता पर नहीं बल्कि आपकी सजातीय संख्या पर निर्भर करता है,तो शातिरों के द्वारा धर्म के साथ छेडछाड प्रमुख मुद्दा रहेगा ही, चाहे वह जिन्ना हों या आज के आजम या ईसाई मिशनरियाँ या फिर खुद को हिन्दूओ का संरक्षक बताकर हिन्दूओ की ही लड़कियों पर भद्दी टिप्पणी करने वाले हिन्दू संगठनो के सदस्य हों॥ 
हमें कुछ ज्यादा नहीं बस इस परंपरा को ही बदलना होगा आखिर औवेशी से लेकर तोगडिया तक को जनाधार भी तो हम ही देते हैं।। भारत का विकास सिर्फ भारतीय कर सकते हैं धर्म के कुत्सित ठेकादार नहीं।स्पष्ट है आज राजनैतिक क्रांति की नही सामाजिक क्रांति की ज्यादा आवश्यकता है॥

धर्म की राजनीति सिर्फ संघ और उसके अनुसांगिक संघठन ही नहीं करते,बल्कि ईसाई और मुस्लिम के स्वघोषित ठेकेदार भी करते हैं...और ये ठेकेदार भी उसी तरह कुटिल और सस्ती लोकप्रियता के भूखे हैं जैसे अन्य कलयुगी मसीहा दिखते हैं..यदि एक वर्ग धर्म के नाम पर सरकार बनाना चाहता है, तो दूसरा वर्ग धर्म के नाम पर, सरकार में अपनी हिस्सेदारी चाहता है. दोनों के नेता प्रयास करते है युवाओं को बरगलाकर अपना सिपाही बनाने का,यदि एक तरफ तोगड़िया हैं तो दूसरी तरफ ओवेशी हैं..और यह कुछ नया नहीं है इससे पहले भी इतिहास में कई ओवेशी आये और गए पर रहे वही ढाक के तीन पात,क्योंकि बिना आपसी सद्भाव के विकास का सपना बेईमानी है..!!
"कर्म से राष्ट्रभक्त बनो और ह्रदय से मानवतावादी"अक्षय भट्ट

Wednesday, November 13, 2013

Interview of IPS Mr Prabhakar Chaudhary


Sunday, November 10, 2013

ये सपना आप भी देखिए !


सुबह उठा तो देखा कि भारत विकसित हो गया है । कल्लू दो रुपये प्रति पैमाना की दर से शैम्पेन वितरित कर रहा है फिर भी कोई भरपेट नहीँ निगल रहा है । युवक और युवतियाँ न्यूनतम परिधानोँ मेँ बड़े सलीके से शैम्पेन का लुफ्त उठा रहे हैँ । कोई किसी को घूर घूर कर देख नहीँ रहा है । ''जिया कुनैन रिजवी का खाली समय का सदुपयोग'' नामक व्याख्यान उटकमण्ड से सीधे टीवी पर प्रसारित हो रहा है । मेरे पूज्य पितामह के चौथे विवाह का जश्न चल रहा है और भावी पितामही अपनी आठवीँ शादी मेँ भी कयामत ढ़ा रही हैँ ।

भारतीयोँ द्वारा ब्रिटिश मजदूरोँ का शोषण आज भी एक वैश्विक मुद्दा बना हुआ है । भारतीय प्रधानमँत्री द्वारा अमेरिकी गरीबी और भूखमरी के अनुदान मेँ कटौती की सर्वत्र निँदा हो रही है ।
बच्चेँ महान अर्थशास्त्री लालू प्रसाद के ''तृण से ऊऋण'' के सिध्दाँत के विश्लेषण मेँ मग्न हैँ ।
रेलवे स्टेशन पर लोग केला और मूँगफली के छिलके नियत स्थान पर ही फेँक रहे हैँ । मूत्रालय और शौचालय का सही उपयोग करना लोग सीख गये हैँ । अब वहाँ भित्ति चित्र और भित्त आलेख का पूर्ण अभाव है । लोग न्यूतम वस्तुओँ के साथ यात्रा कर रहेँ ।
टैट सर अपनी ग्यारहोँ अँगुलियाँ फेस बुक के यज्ञ मेँ आहुति कर दिये हैँ तो शुक्ला सर अब अननोन लड़कियोँ को फ्रेण्ड रिक्वेस्ट भेजना बन्द कर दिये हैँ और सबसे बड़ी बात जिन्ना सर अब मेरा शहर राँची नामक पेज को अपडेट करना बन्द कर दिये हैँ ।
सरकार के ''अब न्यूनतम मेहनत करो'' नामक विधेयक का लोग विरोध कर रहेँ हैँ । कर्त्तव्यनिष्ठता सूचकाँक चौर सौ प्रतिशत तक बढ़ा हुआ है ।

अभूतपूर्व स्वतँत्रता संग्रामी सेनानी मुलायम सिँह की पुस्तक ''साम्प्रदायिक सौहार्द शिखर से शून्य की ओर'' को नोबुल समादृत किया गया है और प्रधानमँत्री मनमोहन को टाइम मैगजीन ने लगातार दसवेँ साल दुनिया का सबसे ताकतवर व्यक्ति घोषित किया । अखिलेश , राहुल और दिग्यविजय तीनोँ व्यावहारिक ज्ञान की पाठशाला मेँ प्रवेश ले चुके हैँ ।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने महान समाज सेवक आशाराम को महिला और बाल विकास का ब्राण्ड अम्बेस्डर बना दिया है ।

महारानी सोनिया ने अपने 21वेँ जन्मदिन पर आस्ट्रेलिया को काँगेस से मुक्त करने की घोषणा की ।
भारत के सभी राज्योँ को समलैँगिक विवाह को मँजूरी मिली ।
जनसंख्या वृध्दि दर ऋणात्मक हो गयी है और सरकार ''अधिक बच्चे उपजाओ और लैपटाप मुफ़्त पाओ'' नामक अभियान चला रही है ।
जातिवाद , क्षेत्रवाद और साम्प्रदायिकता खोजने पर भी नहीँ मिल रही है । संयुक्त राष्ट्र संघ मेँ हिन्दी को वैश्विक भाषा और रुपये को वैश्विक मुद्रा का दर्जा मिल गया है ।

अतीक अहमद भारोत्तोलन मेँ स्वर्ण तो मुख्तार भाई ने निशानेबाजी मेँ तीन स्वर्ण लपक कर देश का गौरव बढ़ाया । मिस यूनिवर्स का ताज भारत सुन्दरी मायावती कृशाँगी को मिला ।
बाबा रामदेव ने हँसना बन्द कर दिया । आयोग परीक्षा की आयुसीमा चालीस से घटा कर साठ कर दिया है और प्रश्नपत्र मेँ नये प्रश्नोँ का भरमार है । विपिन सर के प्रतिभा का आयोग ने लोहा मान ही लिया और उन्हे लौह प्रतियोगी के सम्मान से नवाजा है अब वे शायद परीक्षा न दे । खुशी के इस क्षण मेँ विपिन सर ने एस आर वाई सर को चार बीड़ा पान और किताब कभी न खोलने की शपथ भी दिलायी है ।

मै आज चार नौकरियोँ के लिए त्यागपत्र लिख रहा हूँ । बगल वाले कमरे मेँ लैपटाप पर कुछ अजीब चीखने चिल्लाने की आवाज आ रही है शायद दँगे पर बनी कोई फिल्म बच्चे देख रहेँ हैँ ।
अरे ये क्या ? पछवाड़े पर एक जोरदार लात । साले गदहा बेँच कर सो रहे हो । नीँद खुल गयी । पिता जी के हाथोँ मेँ अखबार और आर ओ परीक्षा रद्द मुख्य समाचार ।

- (ए एन झा छात्रावास में मेरे सहपाठी अजय कुमार झा के फेसबुक वॉल से साभार)

Saturday, December 6, 2008

बारिश की बूंदें


- धनंजय मिश्रा

पत्तियों से लटकी बारिश की बूंदें
और उन पर पड़ती बल्ब की रोशनी रंगीन
नियति और पुरुषार्थ का संगम
प्रकृति और कृत्रिमता का संगम
सुंदर लगते हैं....
प्यारे लगते हैं...
पर डर लगता है
कहीं ये कृत्रिमता प्रकृति पर
और ये पुरुषार्थ नियति पर
हावी ना हो जाए...
कहीं रोशनी के भार से
बारिश की बूदें गिर ना जाएं....

ग़मज़दा हैं ज़िंदगी से...

पेश हैं अजय शुक्ला 'जुल्मी' की दो ग़ज़लें
१.

तंग आ चुके हैं कस-म-कस -ऐ जिन्दगी से हम
ठुकरा न दें इस जहाँ को कहीं बेदिली से हम

लो आज हमने तोड़ लिया रिश्ता-ऐ- उम्मीद
लो अब गिला न करेंगे किसी से हम


एक बार उभारेंगे अभी दिल के वल- वले
गो दब गए हैं भर-ऐ-गम-ऐ-जिन्दगी से हम

गर जिन्दगी में मिल गए फिर इत्तफाक से
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम


हम गम-जदा हैं लायें कहाँ से खुशी के गीत
देंगे वही जो पायेंगे इस जिन्दगी से हम ...

२-
आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो

आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना हो

आज एक बार मन्दिर हो आओ
पूजा कर के प्रसाद भी चढाओ
क्या पता कल के कलयुग मे
भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो

बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना हो

आज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो

आज एक बार चैन की नींद सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना हो

क्या पता
कल हो ना हो ....